मेरी अना- भाग 3
भाग 3
इधर अनिकेत अपनी बारहवीं कक्षा की पढ़ाई में व्यस्त था, उधर अनाहिता स्वयं को मुंबई की दौड़ती-भागती जिंदगी में ढालने की कोशिश कर रही थी। देहरादून और मुम्बई की जिंदगी में जमीन आसमान का फर्क था। देहरादून में जहाँ ठहराव था, वहीं मुम्बई में रुकना कोई जानता ही नहीं था। मुम्बई सोती नहीं थी।
अनाहिता को मुम्बई पहुंचे हुए एक महीना बीत चुका था लेकिन अनिकेत का एक भी खत उसके पास नहीं पहुंचा था। देहरादून छोड़ते हुए उसने अनिकेत को मुंबई का पता दिया था लेकिन फिर भी उसे अभी तक अनिकेत का कोई खत नहीं मिला था। इस बात से अना थोड़ी नाराज़ थी।
उसने मन ही मन ठान लिया था कि जब तक अनिकेत उसे खत नहीं लिखेगा, वो भी उसे ना ख़त लिखेगी ना ही फोन करेगी। एक दिन कॉलेज से शाम को घर आयी तो देखा उसके कमरे में एक लिफ़ाफ़ा रखा था मेज़ पर। लिफाफे पर उसका ही नाम लिखा था और नीचे अनिकेत का। लिफ़ाफ़े पर अपना और अनिकेत का नाम देखकर उसकी जान में जान आयी। कितने दिनों से इंतज़ार था उसे अनिकेत के ख़त का, आखिरकार आ ही गया।
वो बिस्तर पर लेटकर अनिकेत का खत पढ़ने लगी।
प्रिय अना
माफ़ करना तुमने हर हफ़्ते ख़त लिखने के लिए कहा था, मतलब एक महीने में चार खत। फिलहाल तुम्हें एक ही ख़त भेज रहा हूँ और वो भी एक महीने बाद। मेरी बोर्ड की परीक्षा है और पढ़ाई में इस वक़्त ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। मैं नहीं चाहता मम्मी- पापा को मुझसे कोई शिकायत हो। इसलिए खूब मेहनत कर रहा हूँ। उम्मीद है तुम मुझे समझोगी।
स्कूल अच्छा चल रहा है। कभी-कभी सोचकर बड़ा अजीब लगता है तुम कॉलेज में हो और मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हूँ। यूँ तो मैं तुमसे बड़ा हूँ उम्र में कुछ महीने लेकिन ऐसा लगता है जैसे तुम कॉलेज में पढ़ने वाली बड़ी दीदी हो हो और मैं स्कूल में पढ़ने वाला छोटा बच्चा।
हा-हा ....मज़ाक कर रहा हूँ।
वैसे तुम्हारा उपहार मुझे बहुत पसंद आया और उससे अधिक, उस पर लिखे हुए तुम्हारे शब्द। मैंने अभी तुम्हारी दी हुई डायरी में लिखना शुरू नहीं किया है। एक खास मौके के लिए संभाल कर रखी है वो डायरी, जब वो अवसर आयेगा तभी उसमें लिखूँगा। उस खास अवसर के बारे में पूछना मत मुझसे, कुछ अनकहा भी रहना चाहिए हमारे बीच। लेकिन हाँ रोज़ रात को सोने से पहले डायरी के पहले पृष्ठ पर लिखे गए शब्दों को ज़रूर पढ़ता हूँ। वो शब्द, उनमें छिपी भावनाएं मुझे प्रेरित करतीं है जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए। मुश्किल लम्हों में तुम्हारे शब्द ही मेरे लिए सम्बल का काम करते हैं।
पहले की तरह शाम को रोज़ सैर करने नहीं जा पाता। लेकिन जब भी जाता हूँ तो तुम्हारी कमी बहुत खलती है। सैर करने के बाद कुछ देर तक उसी बेंच पर बैठता हूँ जहाँ हम दोनों बैठकर बातें किया करते थे। यूँ तो तुम नहीं हो यहाँ लेकिन उस बेंच पर तुम्हारी स्मृतियों के निशां आज भी महसूस करता हूँ। जब तक तुम देहरादून में थीं साथ, तब तक इस तरह से नहीं सोचा था तुम्हारे बारे में, जैसे आज सोचता हूँ। जिंदगी भी कैसी है, हर पल बदलती रहती है।
खैर अपने बारे में जितना लिख सकता था, उतना लिख दिया है। अब अगले खत में तुम अपने बारे में लिखना।तुमने किस कॉलेज में दाखिला लिया, क्या कर रही हो, मुम्बई के बारे में सब जानकारी देना।
अपना ख्याल रखना। तुम्हारे ख़त का इंतज़ार रहेगा अना।
एक बात और, तुम्हें अना कहकर पुकारना मुझे बहुत अच्छा लगता है। वैसे तुम्हें कैसा लगता है, मेरा तुम्हें अना कहकर पुकारना, यह जरूर खत में लिखना।
तुम्हारा दोस्त
अनिकेत
अनिकेत का ख़त पढ़कर अना का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था। जो मज़ा खत के आने का इंतज़ार करने में, ख़त लिखने में है वो फोन पर बात करने में कहाँ था। फ़ोन पर बात करना किसी जंक फूड की तरह था और ख़त लिखना दाल मखनी की तरह जो धीमी-धीमी आंच पर पकती है, जितनी ज़्यादा देर रिड़ती है, उतनी ही स्वादिष्ट बनती है।
अना को अच्छा लगा था यह पढ़कर कि अनिकेत को उसकी कमी खलती है। बीते दिनों की यादें फ़िर से ताज़ा हो गईं थी। आँखों के सामने बेंच पर उसे अनिकेत और अना हँसते हुए नज़र आ रहे थे। अनिकेत का शांत स्वभाव, उसकी कविताएँ, उसकी आवाज, अना को उसकी ओर आकर्षित करतीं थी। अना देहरादून की उन शामों को आज भी आँखें बंद करके महसूस कर सकती थी जो उसने अनिकेत के साथ बितायी थी।
रात को अनाहिता ने पेन उठाया और अनिकेत को ख़त लिखने लगी।
प्रिय अनिकेत
आज ही तुम्हारा ख़त मिला और आज ही तुम्हें जवाब लिखने बैठ गयी। तुम भी कहोगे कितनी बेसब्री हूँ मैं, लेकिन क्या करूँ, ऐसी ही हूँ। तुम्हारी बोर्ड की परीक्षा है, जाहिर है तुम पर पढ़ाई और अपेक्षाओं का बोझ भी अधिक होगा, माफ़ करना मैंने तुम्हें महीने के चार खतों में उलझा दिया। जब भी तुम्हें समय मिले तुम तब लिखना, इस वक्त सबसे ज़रूरी तुम्हारी पढ़ाई है, उसके सिवा कुछ भी नहीं। वैसे एक खत ही इतना लंबा लिख देना कि चार खतों की कमी एक ही खत से पूरी हो जाए। हा-हा..... क्या करें तुम्हारी दोस्त अना स्वार्थी जो है।
मुम्बई की रफ़्तार बहुत तेज़ है, समय लगेगा इसकी रफ़्तार से अपनी रफ़्तार मिलाने में अभी। मैंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में बी ए इंग्लिश ऑनर्स में दाखिला लिया है। कॉलेज जाना भी शुरू कर दिया है। मैं मुम्बई की लाइफ लाइन कहे जाने वाली लोकल ट्रेन के लेडीज़ डिब्बे में बैठकर जाती हूँ रोज कॉलेज के लिए। लोकल ट्रेन से जाना मुझे बिल्कुल भी पसन्द नहीं है, इतनी भीड़ होती है कि तुम्हें क्या बताऊँ? सब पसीने से तरबतर एक दूसरे से चिपके रहते हैं। ट्रेन में चढ़ना भी जंग जीतने के बराबर है और उतरना भी। शुरुवात में तो बहुत मुश्किल होती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे आदत पड़ रही है।
अपना देहरादून बहुत याद आता है। देहरादून के पहाड़, वहाँ का ठंडा मौसम सब याद आता है। देहरादून का ख़्याल ही मुम्बई की तपती गर्मी में शीतल छाँव का काम करता है। देहरादून का जीवन किसी शांत नदी की तरह था और मुम्बई का जीवन शताब्दी ट्रेन की तरह तेज़ गति से दौड़ता हुआ।
यहाँ मराठी आम बोलचाल की भाषा है। फिलहाल कुछ ज़्यादा समझ नहीं आती लेकिन उम्मीद है जल्दी सीख जाऊँगी। मुम्बई में लोग वड़ा पाव बहुत खाते हैं और दिन में किसी भी वक़्त खाते हैं। खाने में बेहद तीखा होता है लेकिन होता एकदम स्वाद है। हफ़्ते में एक दो बार तो मैं भी खा ही लेती हूँ कॉलेज से आते हुए। अब तो मम्मी भी घर में वड़ा पाव बनाने लगीं है।
तुम कभी मुम्बई में आओगे तो तुम्हें भी खिलाऊंगी। हम दोनों बारिश में भीगते हुए किसी दिन टपरी के नीचे खड़े होकर वड़ा पाव खाएंगे। क्या तुम कभी आओगे?
बड़ा मुश्किल सवाल है जानती हूँ मैं, लेकिन उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है।
सपने देखने में क्या जाता है, क्या पता कब कौन सा सपना सच हो जाए। सच कहूँ तो अब तुमसे मिलना एक सपना ही लगता है।
चाहे कितने भी दोस्त बन जाएं अनिकेत लेकिन तुम्हारी कमी सदा खलेगी।
अपना ख्याल रखना। तुम्हारे ख़त का इंतज़ार रहेगा।
एक बात और, तुम्हारा मुझे अना कहकर बुलाना मुझे भी बहुत अच्छा लगता है।
तुम्हारी दोस्त
अना
अगले दिन ही अना ने यह ख़त पोस्ट कर दिया था।
❤सोनिया जाधव
Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 04:18 PM
बहुत ही रोचक है
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Inayat
05-Feb-2022 04:31 PM
Bahut khoobsurat kahani likhi h aapne, padh kar achcha lag raha hai bahut. ..
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Sandhya Prakash
04-Feb-2022 10:32 PM
Bahut khubsurat kahani, sahi kaha aapane jo bat khat me hoti h vo phone me kahan,bahut badhiya kahani agle bhag ke intjar me
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